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इस क़दर याद है बस इ'श्क़ की रूदाद 'हयात'जैसे देखा था कभी ख़्वाब-ए-परेशाँ कोई
दिल गया रौनक़-ए-हयात गईग़म गया सारी काएनात गई
तेरा इ’श्क़ मुझ कूँ है आब-ए-हयातन आवे मुझे मौत तेरे सँगात
आख़िर ग़म-ए-हयात के मातम से फ़ाएदाग़म ज़िंदगी के साथ ख़ुशी ज़िंदगी के साथ
मैं तलख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गयाग़म की सियाह रात से घबरा के पी गया
तुम्हारा दर्द है सरमाया-ए-हयात मिराख़ुदा करे कि ये हो ला-दवा ग़रीबनवाज़
वो क्या हयात है जो तर्क-ए-बंदगी न हुईचराग़ जलता रहा और रौशनी न हुई
दी सदा ये हातिफ़-ए-ग़ैबी ने हंगाम-ए-दुआ’आरज़ू पूरी 'अ’ज़ीज़-ए-वारसी' हो जाएगी
मैं हमेशा असीर-ए-अलम ही रहा मिरे दिल में सदा तेरा ग़म ही रहामिरा नख़्ल-ए-उम्मीद क़लम ही रहा मेरे रोने का कोई समर न मिला
शीशे में हसीं बादा-ए-गुल-फ़ाम हसीं हैमय-ख़ाना-ए-इस्लाम का हर जाम हसीं है
आईना-ए-दिल को साफ़ कर देखाउस में असलन नहीं क़ुसूर किया
जब ख़ुदी अहदियत ने दूर कियानूर-ए-वहदत ने तब ज़ुहूर किया
मिरे सय्याद को बा-वस्फ़-ए-असीरी है ये ख़ौफ़मैं क़फ़स में भी बना लूँगा गुलिस्ताँ कोई
ज़ुल्फ़ों का तसव्वुर सलामों की है बारिशमजबूर ग़म-ए-इ’श्क़ की हर शाम हसीं है
शरमिंदा हूँ गुनाह से अपने मैं इस क़दरक्या चश्म-ए-पुर-गुनह को तेरी दू-बदू करें
खोल आँख अपनी देख अयाँ हक़ का नूर हैहर बर्ग व हर शजर में उसी का ज़ुहूर है
ख़ून-ए-उ’श्शाक़ से क़ातिल ने न खेली होलीसफ़-ए-मक़्तल में कभी रंग उछलने न दिया
जफ़ा की बातें सदा बनाना वफ़ा की बातें कभी न करनाख़ुदा के घर में कमी नहीं है किए में अपने कमी न करना
शह-ए-ख़ूबान-ए-मन रंगीं-क़बा नाज़ुक-अदा दारदब-हर ग़म्ज़: ब-हर इ'श्वः जहाने मुब्तला दारद
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
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